विष्णुपुराण - vishnu puran in Hindi


प्रस्तुत लेख मे विष्णुपुराण की जानकारी एकदम विस्तार से स्पष्ट रूप से बताई गई है. अट्ठारह पुराणों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथा प्राचीन है। यह श्री पराशर ऋषि द्वारा प्रणीत है। इसके प्रतिपाद्य भगवान विष्णु हैं, जो सृष्टि के आदिकारण, नित्य, अक्षय, अव्यय है. विष्णुपुराण एक श्रेष्ठ पुराण हैं। यह विष्णुपुराण का ज्ञान पाराशर ऋषीने अपने शिष्य श्री मैत्रेय ऋषी को बताया था. पाराशर ऋषीने प्रस्तुत पुराण कि रचना कि है.दोस्तो आपने नवीन कभी विष्णुपुराण के बारे मे जरूर सुना होगा. आज हम इसी विष्णुपुराण की जानकारी vishnu puran in Hindi आपको डिटेल में देने वाले है. इस लेख मे दी गई जानकारी एकदम विस्तार से बताई गई है जो आपको सखोल ज्ञान प्राप्त करा ने मे सहाय्यक होगी.

vishnu puran in Hindi

विष्णुपुराण - vishnu puran in Hindi

विष्णुपुराण, भारतीय पुराणों में से एक है और हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक माना जाता है। इसे भगवान विष्णु की महिमा, लीलाएं, अवतारों, धर्म, वैज्ञानिक ज्ञान और वैदिक उपासना के साथ जोड़कर लिखा गया है।

श्री पराशर ऋषिजी ने कहा है कि हे मैत्रेय, मैं तुम्हें जो ज्ञान सुनाने जा रहा हूं, वह वही घटना है जो दक्षादि मुनि ने राजा पुरुकृत्स को नर्मदा नदी के तट पर बताई थी। पुरुकृत्स ने इसे सारस्वत से कहा है और सारस्वत ने इसे कहा है। श्री पराशरजी ने श्री विष्णु पुराण के प्रथम अध्याय, श्लोक 31 (पृष्ठ संख्या 3) में कहा है कि संसार विष्णु से उत्पन्न हुआ है और उन्हीं में स्थित है। वह संसार की स्थिति और लय का निर्माता है। दूसरे अध्याय (पेज नं. 4) के 15वें और 16वें श्लोक में कहा गया है कि हे द्विज! परब्रह्म का प्रथम रूप पुरुष अर्थात् ईश्वर ही प्रतीत होता है, परन्तु उसका व्यक्त (महाविष्णु के रूप में प्रकट) तथा अव्यक्त (अदृश्य रूप में 21 ब्रह्माण्डों में वास्तविक समय में निवास करना) उसका ही है।

2 इस अध्याय के 27वें श्लोक (पेज नं. 5) में कहा गया है कि प्रलयकाल में यही मैत्रेय प्रधान यानी प्रकृति के समान अवस्था में स्थित होकर यानी पुरुष की प्रकृति से अलग होकर भगवान विष्णु का कालरूप बन गया।
 12वें अध्याय (पेज नं. 5) के श्लोक 28 से 30 में | (स्वर्ग में पहुंचकर) वह परब्रह्म परमात्मा विश्वरूप सर्वव्यापक सर्वभूतेश्वर वसीमामा | भगवान ने अपनी इच्छा से विकारीप्रधान और अविकारी पुरुष में प्रवेश करके उन्हें सुशोभित किया। ..28-29..जैसे कि निष्क्रिय, गंध अपनी उपस्थिति से प्रधान और पुरुष को भी प्रेरित करता है। 

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2 इस अध्याय के 66वें श्लोक (पेज नं. 8) में लिखा है कि भगवान विष्णु ही सृष्टिकर्ता (ब्राह्मण) हैं जो अपनी रचना स्वयं रचते हैं। सत्यवती (लोक (पृष्ठ संख्या 11)) में 70वें श्लोक में लिखा है कि एक और भगवान है, जो ब्रह्मा है, भगवान विष्णु ने राज्यों के माध्यम से ब्रह्मा और अन्य को बनाया है। अध्याय 4 शिव आदि देवताओं के भगवान हैं। अध्याय 4 में कथा 14 व 15 तथा 17 से 22 तक सत्यवती ने पत्ति श्लोक (पेज नं. 11 व 12) में लिखा है कि पृथ्वी बोल रही है- हे कालस्वरूप आपको मेरा नमस्कार है। हे प्रभु! आप ही संसार की रचना हैं। और दूसरों के लिए ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र का रूप धारण करते हैं। जिस अवतार रूप में आप प्रकट हुए थे, उसी अवतार से देवता मत्स्य रूप की पूजा करते हैं। आप ओंकार हैं। चौथे अध्याय, श्लोक 50 (पृष्ठ संख्या 14) में, यह लिखा है कि तब भगवान श्रीहरि रजोगुणी हो गये और उन्होंने चतुर्मुख ब्रह्मा का रूप धारण करके सृष्टि की रचना की.

इस कथन से यह सिद्ध होता है कि श्री विष्णु पुराण की रचना ऋषि पराशरजी द्वारा सुने गये ज्ञान अर्थात् लोक वेदों के आधार पर हुई है। क्योंकि वास्तविक ज्ञान सबसे पहले स्वयं परमेश्वर ने सतयुग में प्रकट किया था और श्री ब्रह्माजी को दिया था। श्री ब्रह्माजी ने अपने वंशजों को कुछ ज्ञान तथा कुछ स्वनिर्मित काल्पनिक ज्ञान प्रदान किया। श्री पाराशरजी को यह लोकवेद एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सुनने तथा कहने से प्राप्त हुआ। श्री पराशरजी ने विष्णु को काल मेखिल तथा परब्रह्म भी कहा है। इस वर्णन से यह भी सिद्ध होता है कि विष्णु अर्थात् ब्रह्मस्वरूप काल ने ही ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव के रूप में अपनी उत्पत्ति मानकर सृष्टि की रचना की। ब्रह्म (काल) ही महलोक में तीन रूपों में प्रकट होकर लीला करता है और उसे कष्ट देता है। उसकी भी वहीं मृत्यु हो जाती है. (विशेष जानकारी के लिए कृपया 'प्रलय की जानकारी' पुस्तक 'गहरी नजर गीता में' के 8वें अध्याय के 17वें श्लोक का स्पष्टीकरण पढ़ें।) एक ही ब्रह्मलोक में तीन स्थान बने हैं। एक रजगुणप्रधान जिसमें वही कालरूप ब्रह्मा अपना ब्रह्म रूप धारण करके निवास करता है।

साथ ही पत्नी के रूप में दुर्गा को पाकर वह एक राजगुणप्रधान पुत्र को जन्म देता है। उसका नाम ब्रह्मा है. इस प्रकार वह ब्रह्माण्ड में उत्पन्न होता है। इस प्रकार विष्णु का रूप धारण करना चाहिए और उस ब्रह्मलोक में सतगुणप्रधान स्थान बनाकर स्वयं को समझना चाहिए। ज़िंदगियाँ यहां दुर्गेस (प्रकृति) पत्नी का रूप धारण कर गुणवान पुत्र उत्पन्न करती है। उसका नाम विष्णु है. उस पुत्र के द्वारा ब्रह्माण्ड में तीनों लोकों (पृथ्वी, पाताल, स्वर्ग) की स्थिति बनाने का कार्य किया जाता है। (प्रमाण शिवपुराण- गीता प्रेस, अनुवाद मुलेचा 2 गोरखपुर द्वारा प्रकाशित- हनुमान प्रसाद पोद्दार गोस्वामी, अध्याय 6.7 पृष्ठ 102 एवं 123 रुद्रसंहिता से) ब्रह्मलोक में ही तमोगुणप्रधान द्वारा एक तीसरा स्थान बनाया जाता है और ए स्वयं शिव का रूप धारण करके वहां रहता है। यहां भी दुर्गा (प्रकृति) पति-पत्नी के साथ रहती है और एक गुणी तीसरे पुत्र को जन्म देती है। उनका नाम शंकर (शिव) है। इस पुत्र के द्वारा तीनों लोकों के पशु मारे जाते हैं।
विष्णु पुराण में चौथे अध्याय तक का ज्ञान कालरूप ब्रह्म अर्थात् ज्योति शिव महा निरंजन का है। पांचवें अध्याय से अगला समान ज्ञान कालपुत्र सतगुण विष्णु अर्थात का लीला का है और उनके अवतार श्री राम, श्री कृष्ण आदि का भी ज्ञान है।
 यहां विशेष विचारणीय बात यह है कि श्री विष्णु पुराण के वक्ता श्री पराशर पुस्कटति ऋषि हैं। यही ज्ञान पुरुकुत्स ने दक्षादि ऋषि से सुना, पुरुकुत्स ने सारस्वत से सुना और सारस्वत से श्री पराशर ऋषि ने सुना। वही ज्ञान श्री विष्णु पुराण में दर्ज है और आज भी हमारे हाथ में है। इसमें केवल एक ब्रह्माण्ड का ज्ञान उसका है और वह भी अधूरा है। श्री देवी पुराण, श्री शिवपुराण आदि पुराणों का ज्ञान भी ब्रह्माजी ने ही दिया है। श्री पराशर ऋषियों द्वारा दिया गया ज्ञान श्री ब्रह्मा द्वारा दिये गये ज्ञान के समान नहीं हो सकता। इसीलिए श्री विष्णु पुराण को समझने के लिए देवी पुराण और श्री शिव पुराण की सहायता लेनी होगी। क्योंकि यह ज्ञान दक्षादि ऋषि को उनके पिता श्री ब्रह्मा जी से प्राप्त हुआ था। श्री देवी पुराण और श्री शिवपुराण को समझने के लिए श्रीमद्भागवत गीता और चारों वेदों की सहायता लेनी होगी। क्योंकि यह ज्ञान ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव का दाता अथवा पिता स्वयं भगवान कालरूपी ब्रह्मा द्वारा दिया गया है। पवित्र वेदों तथा पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता जी के ज्ञान को समझने के लिए कालरूपी ब्रह्मा अर्थात् पिता परम अक्षर ब्रह्म (कविर्देव) द्वारा प्रदत्त स्वसम वेद अर्थात् सूक्ष्म वेद की सहायता लेनी होगी, जो प्रत्यक्ष होता है। कविर्वाणी (कविर्गिभी) स्वयं सत्पुरुष (पूर्ण ब्रह्म कविर्देव) द्वारा। (ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मंत्र 16 से 20 का प्रमाण है.)

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Ques 1. विष्णु पुराण कितने है?
    Ans : विष्णुपुराण अठरा पुराण मे से श्रेष्ठ और प्राचीन पुराने है. पवित्र विष्णुपुराण श्री पराशर मुनीने लिखा है.

Ques 2. सबसे बडा पुराण क्या है?
    Ans : स्कंदपुराण सबसे बडा पुराण माना जाता है. इसमे कुल ८१००० श्लोक है.
 
Ques 3. सबसे अच्छा पुराण कोनसा है?
    Ans : भागवत पुराण सबसे लोकप्रिय औरअच्छा पुराण है .

दोस्तो ये थी  के बारे मे रोचक जानकारी . आपको  vishnu puran in Hindi की जानकारी कैसी लगी हमे कमेंट मे जरूर बताये. साथ ही अपने दोस्त और परिवार वालो के साथ शेअर करे. 

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